3 / 3 / 13

" न जाने ऐसी श्याम कब देखी
रेगिस्ता सा ये सुनहरा आकाश,
समुन्दर सा बेहता ये बादल,

न जाने ऐसी श्याम कब अब देखुँ,
खामोशी से गुनगुनाते ये पंछीयो की सरगंम,
हवा मे तेरती ये गुमना सी खुशबु,

न जाने ऐसी श्याम कब मिले
गुम सुम से होटों पर खामोशी से शब्दो की प्यास होने लगी,
सुनी सी राह मै आँखो मै हल्की सी चमक होने लगी,

न जाने ऐसी श्याम कब देखी
न जाने ऐसी श्याम कब अब देखुँ,
न जाने ऐसी श्याम कब मिले । ।

- आनंद*)

13 - 3 - 13

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